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"आमंत्रण" ---- `बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).

सोमवार, 23 जून 2008

मेरी वेणी में सवेरे सवेरे

बेटी
(ऋषभ देव शर्मा )






जब तुम पास नहीं होती

तब मैं अकेली होती हूँ।

इसे तुम जानती हो, माँ

इसीलिए तो अपने आशीष

रोज गूँथ देती हो

मेरी वेणी में सवेरे- सवेरे॥


अपना सारा लाड़

आँज देती हो मेरी आंखों में

घर से निकलते समय।


तुम दुनिया भर में

सबसे अच्छी माँ हो,

-मेरी माँ .

4 टिप्पणियाँ:

vijaymaudgill ने कहा…

बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने। सच में मां से बढ़कर कुछ नहीं होता। उसी से दुनिया शुरु होती है और उसी पर ख़त्म होती है। बहुत अच्छा लगा आपकी कविता पढ़कर। शुभकामनाएं।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

वेणी और अंजन जैसे प्रतीकों से कविता अद्भुत बन पडी़ है।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

जसवीर जी,विजय जी व चंद्रमौलेश्वर जी!,

कविता की प्रशंसा के लिए व पधारने के लिए धन्यवाद.
सद्भाव बनाए रखें.

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