जब तुम पास नहीं होती
तब मैं अकेली होती हूँ।
इसे तुम जानती हो, माँ
इसीलिए तो अपने आशीष
रोज गूँथ देती हो
मेरी वेणी में सवेरे- सवेरे॥
अपना सारा लाड़
आँज देती हो मेरी आंखों में
घर से निकलते समय।
तुम दुनिया भर में
सबसे अच्छी माँ हो,
-मेरी माँ .
तब मैं अकेली होती हूँ।
इसे तुम जानती हो, माँ
इसीलिए तो अपने आशीष
रोज गूँथ देती हो
मेरी वेणी में सवेरे- सवेरे॥
अपना सारा लाड़
आँज देती हो मेरी आंखों में
घर से निकलते समय।
तुम दुनिया भर में
सबसे अच्छी माँ हो,
-मेरी माँ .
4 टिप्पणियाँ:
sach me bhut sundar rachana. likhati rhe.
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने। सच में मां से बढ़कर कुछ नहीं होता। उसी से दुनिया शुरु होती है और उसी पर ख़त्म होती है। बहुत अच्छा लगा आपकी कविता पढ़कर। शुभकामनाएं।
वेणी और अंजन जैसे प्रतीकों से कविता अद्भुत बन पडी़ है।
जसवीर जी,विजय जी व चंद्रमौलेश्वर जी!,
कविता की प्रशंसा के लिए व पधारने के लिए धन्यवाद.
सद्भाव बनाए रखें.
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