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"आमंत्रण" ---- `बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).

शुक्रवार, 14 अगस्त 2009

वन्देमातरम् (मूल व अनुवाद)

वन्देमातरम् (मूल व अनुवाद)


वन्दे मातरम्

सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलां मातरम् 

शुभ्रज्योत्स्ना-पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् 
सुखदां वरदां मातरम् ॥


कोटि-कोटि कण्ठ कलकल निनाद कराले
कोटि-कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले
के बोले मा तुमि अबले 
बहुबल धारिणीम् , नमामि तारिणीम्
रिपुदलवारिणीम् मातरम् ॥
वन्दे मातरम् 


तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमार हि प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे ॥
वन्दे मातरम्


त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम्
नमामि कमलां अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम् ॥

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम् ॥





Translation by Shree Aurobindo


Mother, I bow to thee!
Rich with thy hurrying streams,
bright with orchard gleams,
Cool with thy winds of delight,
Dark fields waving Mother of might,
Mother free. Glory of moonlight dreams,
Over thy branches and lordly streams,
Clad in thy blossoming trees,
Mother, giver of ease
Laughing low and sweet!
Mother I kiss thy feet,
Speaker sweet and low!
Mother, to thee I bow.
Who hath said thou art weak in thy lands
When the sword flesh out in the seventy million hands
And seventy million voices roar
Thy dreadful name from shore to shore?
With many strengths who art mighty and stored,
To thee I call Mother and Lord!
Though who savest, arise and save!
To her I cry who ever her foeman drove
Back from plain and Sea
And shook herself free.
Thou art wisdom, thou art law,
Thou art heart, our soul, our breath
Though art love divine, the awe
In our hearts that conquers death.
Thine the strength that nervs the arm,
Thine the beauty, thine the charm.
Every image made divine
In our temples is but thine.

Thou art Durga, Lady and Queen,
With her hands that strike and her
swords of sheen,
Thou art Lakshmi lotus-throned,
And the Muse a hundred-toned,
Pure and perfect without peer,
Mother lend thine ear,
Rich with thy hurrying streams,
Bright with thy orchard gleems,
Dark of hue O candid-fair In thy soul, with jewelled hair
And thy glorious smile divine,
Lovilest of all earthly lands,
Showering wealth from well-stored hands!
Mother, mother mine!
Mother sweet, I bow to thee,
Mother great and free!

12 टिप्पणियाँ:

Vinay ने कहा…

स्वतंत्रा दिवस जी हार्दिक शुभकामनाएँ

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

इस सामग्री को सहेजना ऐतिहासिक महत्त्व का राष्ट्रीय कार्य है.
अतः स्तुत्य भी है

कामोद Kaamod ने कहा…

उत्तम विचार
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जय हिन्द

अनुनाद सिंह ने कहा…

यह तो आधा काम ही हुआ। मैं तो हिन्दी-अनुवाद पढ़ने की इच्छा से यहाँ आया था।

रचना गौड़ ’भारती’ ने कहा…

आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

फिर भी भाई लोग इसमें जातिवाद की बू देख रहे हैं:)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर , खासकर युवा पीढी के लिए ! इसका प्रिंट लेकर अपने पास रख रहा हूँ, बच्चो की जानकारी हेतु !

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

आदरणीया कविता जी ,
बहुत ही अच्छे और अकर्षक ढंग से प्रकाशित किया है आपने
इस गीत को ....हार्दिक बधाई .
हेमंत कुमार

Dr Parveen Chopra ने कहा…

यह एक बहुत ही बढ़िया पहल है। इस शुभ काम में हमारे लिये कोई सेवा हो तो बतलाईये, खुशी होगी...इसी बहाने हिंदी साहित्य हम भी पढ़ लिया करेंगे।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

धन्यवाद मित्रो! आपके शब्दों से बल मिला|

@ प्रवीण जी, इस अभियान के उद्देश्यों में आप की सह मति के लिए आभारी हूँ. आप किस प्रकार सहयोग दे सकेंगे, यह तो आपकी सुविधा पर है, यदि कोइ विषयानुकूल सामग्री आप उपलब्ध करवाना चाहें तो हर्ष होगा. मेरा आई डी - कविता डॉट vachaknavee ऐट द रेट ऑफ़ गूगल डॉट कॉम है|

Unknown ने कहा…

वन्दे मातरम् के अड़्गभड़्ग के पश्चात् अब २ ही श्लोक शेष रह गए हैं पर कतिपय लोगों ने इसे पूर्ण रूप में बचा कर रखा है। मैं भी यथावसर पूरा ही गाता हूँ।
यहाँ क्वचित् अशुद्धियाँ रह गई हैं और एकाध स्थान पर कालसापेक्ष परिवर्तन भी अपेक्षित है-

१) 'शुभ्रज्योत्स्ना-पुलकितयामिनीम्'
२) 'तुमि हृदि'
३) 'त्वं हि प्राणाः'
४) 'सप्तकोटिकण्ठ' के स्थान पर अब 'कोटि कोटि कण्ठ' तथा इसी प्रकार 'द्विसप्तकोटि' के स्थान पर भी 'कोटि कोटि' कहने में ही औचित्य है!
५) 'के बले मा तुमी अबले' के स्थान पर मैंने 'अबला केनो मा एतो बले' सुना-सीखा है!

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आपका एक-एक सार्थक शब्द इस अभियान व प्रयास को बल देगा. मर्यादा व संतुलन, विवेक के पर्याय हैं और उनकी सराहना के शब्द मेरे पास नहीं हैं;पुनरपि उनका सत्कार करती हूँ|आपके प्रतिक्रिया करने के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा नैतिक दायित्व ही नहीं अपितु प्रसन्नता का कारण भी है|पुन: स्वागत कर हर्ष होगा| आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।

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