खट्टे अंगूर
----डा. किशोर काबरा
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एक लोमड़ी भूखी प्यासी
चली ढूंढने खाना
दिन भर घूमी इधर उधर पर
मिला न उसको दाना
एक बाग़ में चलते चलते
निकल गई वह दूर
देखा उसने लटक रहे हैं
बडे़ बड़े अंगूर
पके पके अंगूर देख कर
मुंह में आया पानी
उछल कूद कर लगी पकड़ने
उन्हें लोमड़ी रानी
मगर बड़ी ऊंचाई पर थे
अंगूरों के गुच्छे
मीठे मीठे प्यारे प्यारे
मोती जैसे अच्छे
आखिर उनको पकड़ न पाई
हो गई थक कर चूर
जाते जाते बोली कितने
खट्टे हैं अंगूर
---प्रस्तुति; योगेन्द्र मौदगिल
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