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"आमंत्रण" ---- `बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).

बुधवार, 9 नवंबर 2011

बिपिन चन्द्र पाल: "एक महान राष्ट्रवादी दिव्यद्रष्टा"

जयंती (7 नवंबर) पर विशेष 









"बिपिन चंद्र पाल "
भारत में 'क्रांतिकारी विचारों के जनक' का परिचय :


बिपिन चंद्र पाल का जन्म 7 नवंबर 1858 को वर्त्तमान बांग्लादेश के हबीबगंज जिले के पोइल नामक गाँव में एक धनी हिंदू वैष्णव परिवार में हुआ था। बिपिन चंद्र पाल को भारत में 'क्रांतिकारी विचारों का जनक' और महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के रूप में जाना जाता है। वह एक महान राष्ट्रवादी दिव्यद्रष्टा थे जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता रूपी पवित्र कार्य के लिए वीरता पूर्वक संघर्ष किया। वह एक महान देशभक्त, वक्ता, पत्रकार और वीर योद्धा थे जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतिम समय तक संघर्ष किया।



बिपिन चंद्र पाल का प्रारंभिक जीवन :

उन्होंने कलकत्ता (वर्त्तमान कोलकाता) के प्रेसीडेंसी कालेज में प्रवेश लिया लेकिन दुर्भाग्यवश वह अपनी पढाई पूरी नहीं कर सके और तब अपना कैरियर प्रधानाचार्य के रूप में शुरू किया। बाद के वर्षों में जब बिपिन कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी में पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में काम कर रहे थे, उनका कई बड़े नेताओं जैसे, शिवनाथ शास्त्री, एस.एन.बनर्जी और बी.के.गोस्वामी से मिलना हुआ। उन लोगों से प्रभावित होकर बिपिन ने शिक्षण का क्षेत्र छोड़कर राजनीति में अपना कैरियर शुरू करने का निश्चय किया। आगे जाकर वे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महर्षि अरविन्द के कार्यों, दर्शन, आध्यात्मिक विचारों और देशभक्ति से बहुत प्रभावित हुए। इन सभी राजनेताओं से अत्यधिक प्रभावित और प्रेरित होकर बिपिन ने अपने को स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित करने का निश्चय किया। वह तुलनात्मक विचारधारा का अध्ययन करने के लिए 1898 में इंगलैंड भी गए। एक वर्ष की अवधि बिताकर वह भारत आये और उस समय से उन्होंने स्थानीय लोगों को स्वराज के विचार से परिचित कराना प्रारम्भ कर दिया। एक अच्छे पत्रकार और वक्ता होने के नाते वह अपने लेखों, भाषणों, और अन्य विवरणों के द्वारा हमेशा ही देशभक्ति, मानवता और सामाजिक जागरूकता के साथ पूर्ण स्वराज की आवश्यकता के विचार को प्रसारित करते रहते थे। 1904 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बम्बई सत्र, 1905 के बंगाल विभाजन, स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन और 1923 की बंगाल की संधि में पाल ने जुझारू प्रवृत्ति और अत्यधिक साहस और उत्साह के साथ भाग लिया।

लाल लजपत राय , बाल गंगाधर (लोकमान्य) तिलक और बिपिन चन्द्र पाल


 उत्साही स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बिपिन चंद्र पाल :

वह तीन प्रमुख देशभक्तों में से एक थे जिन्हें लाल-बाल-पाल की त्रयी के रूप में जाना जाता है। शेष दो लाला लाजपत राय और बाल गंगाधर तिलक थे। वह स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख शिल्पकारों में से एक थे। बंगाल के विभाजन के खिलाफ उनका संघर्ष अविस्मरणीय है। त्रयी के तीनों सदस्य का मानना था कि साहस, स्वयं-सहायता और आत्म-बलिदान के द्वारा ही स्वराज के विचार या पूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता को पाया जा सकता है। गांधी जी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उद्भव से पूर्व 1905 के बंगाल विभाजन के समय ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति के खिलाफ पहले लोकप्रिय जनांदोलन को शुरू करने का श्रेय इन्हीं तीनों को जाता है। इनलोगों ने ब्रिटिश शासकों तक अपना सन्देश पहुंचाने के लिए कठोर उपायों जैसे, ब्रिटिश उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर के कारखानों में बने पश्चिमी कपड़ों को जलाना, ब्रिटिश लोगों के स्वामित्व वाले व्यापारों और उद्योगों में हड़ताल और तालाबंदी आदि उपायों की वकालत की। वंदे मातरम विद्रोह मामले में श्री अरविंद के खिलाफ गवाही देने से मना करने के कारण बिपिन चंद्र पाल को छह महीने की जेल की सजा भी हुई।


बिपिन चंद्र पाल की उग्र पत्रकारिता और वक्तृता :

एक प्रसिद्ध पत्रकार के रूप में प्रख्यात पाल ने अपने इस व्यवसाय का प्रयोग देशभक्ति की भावना और सामाजिक जागरूकता के प्रसारण में किया। उन्होंने राष्ट्रवाद और स्वराज के विचार को प्रसारित करने के लिए अनेक पत्रिकाएँ, साप्ताहिक और पुस्तकें भी प्रकाशित की। उनकी प्रमुख पुस्तकों में भारतीय राष्ट्रवाद (Indian Nationalism), राष्ट्रीयता और साम्राज्य (Nationality and Empire), स्वराज और वर्त्तमान स्थिति (Swaraj and the Present Situation), सामाजिक सुधार के आधार (The Basis of Social Reform), भारत की आत्मा (The Soul of India), हिंदुत्व का नूतन तात्पर्य और अध्ययन (The New Spirit and Studies in Hinduism) शामिल है। वह 'डेमोक्रेट', 'इंडिपेंडेंट' और कई अन्य पत्रिकाओं और समाचारपत्रों के संपादक थे। 'परिदर्शक' (1886-बंगाली साप्ताहिक), 'न्यू इंडिया' (1902-अंग्रेजी साप्ताहिक) और 'वंदे मातरम' (1906-बंगाली साप्ताहिक) एवं 'स्वराज' ये कतिपय ऐसी पत्रिकाएँ हैं जो उनके द्वारा प्रारम्भ की गईं। 



गांधी द्वारा वर्त्तमान सरकार को बिना सरकार द्वारा स्थापित करने की घोषणा और उनकी पुरोहिताई निरंकुशता को देखकर वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिसने गांधी या उनके 'गांधी पंथ' की आलोचना करने का साहस किया था। इसी कारण पाल ने 1920 में गांधी के असहयोग आंदोलन का भी विरोध किया। गांधी जी के प्रति उनकी आलोचना की शुरुआत गांधी जी के भारत आगमन से ही हो गई थी जो 1921 के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र में भी दिखी जब पाल अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान गांधी जी की “तार्किक की बजाय जादुई विचारों” की आलोचना करने लगे। पाल ने स्वैच्छिक रूप से 1920 में राजनीति से संन्यास ले लिया, हालांकि राष्ट्रीय समस्याओं पर अपने विचार जीवनपर्यंत अभिव्यक्त करते रहे। स्वतन्त्र भारत के स्वप्न को अपने मन में लिए वह 20 मई 1932 को स्वर्ग सिधार गए, और इस प्रकार भारत ने अपना एक महान और जुझारू स्वतंत्रता सेनानी खो दिया। जिसे तत्कालीन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अपूरणीय क्षति के रूप में माना जाता है।





बुधवार, 27 जुलाई 2011

सूरज एक, चन्दा एक .....तारे भये अनेक ....

एक अनेक एकता 





पंडित विनयचंद्र मौद्गिल्य द्वारा रचित इस बालगीत  (1974) को 7 मिनट की एनिमेटेड वीडियो में ढाल कर इस कला ( एनीमेशन) के भारतीय सरताज भीमसेन  ने इसे बनाया था और दूरदर्शन  पर लाखों बच्चों के बचपन की स्मृतियों में यह गुंथी है । 

 भारतीय शॉर्ट फिल्मों के इतिहास की  सर्वाधिक लोकप्रिय, सर्वाधिक डाऊनलोड की गई और सर्वाधिक देखी गई शॉर्ट फिल्म के रूप में भी इसे महत्व प्राप्त है।

आज भी इसे देखते हुए रोमांच हो आना स्वाभाविक है। 


बुधवार, 29 जून 2011

बच्चों का सम्मान



प्रकाशन विभाग
सूचना और प्रसारण मंत्रालय
भारत सरकार

देश भर के 13 स्कूली बच्चों को बाल भारती निबंध प्रतियोगिता पुरस्कार


नई दिल्ली, मंगलवार, 28 जून



देश भर के 13 स्कूली बच्चों को बाल भारती निबंध प्रतियोगिता-2010 के पुरस्कार दिए गए। प्रथम पुरस्कार के लिए दिल्ली के मोहम्मद साकिब खान, दूसरे पुरस्कार के लिए गुड़गाँव  की सविता और तीसरे पुरस्कार के लिए दिल्ली की ही गौरी श्रीवास्तव के निबंधों को चुना गया। अन्य 10 बच्चों को प्रोत्साहन पुरस्कार दिए गए। ये हैं- पूर्वा, प्रियम स्नेह, चारुता गुप्ता, ऋषभ गर्ग, सौहार्द डोभाल, राजा विक्रम, मो. अनस ‘राजा’, कु. उमा देवी, दुष्यंत कुमार फेकर और शुभम तिवारी


सभी विजेता बच्चों को प्रमाण पत्रों के साथ पुरस्कार राशि भी दी गई। ये पुरस्कार, कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सलाम बालक ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रीमती प्रवीण नायर ने दिए। तेरह विजेता बच्चों में सोनभद्र, लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश), सीवान (बिहार), दुर्ग (छत्तीसगढ़), उत्तरकाशी (उत्तराखंड), टोंक (राजस्थान), पटना (बिहार), भोपाल (मध्य प्रदेश), रांची (झारखंड) जैसे दूर शहरों के प्रतियोगी भी शामिल हैं। सूचना और प्रसारण मंत्रालय में संयुक्त सचिव (नीति एवं प्रशासन) श्री खुर्शीद अहमद गनई समारोह में विशेष अतिथि थे।



बाल दिवस के मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित होने वाली इस प्रतियोगिता में इस बार विषय रखा गया था- 'बढ़ते लोग, घटता पानी'। देश भर के करीब एक हजार स्कूली बच्चों ने इसमें भाग लिया। निबंधों का मूल्यांकन भाषा, अभिव्यक्ति और प्रस्तुति के आधार पर किया गया।



विशिष्ट अतिथि श्री गनई ने कहा कि तकनीकी विकास का पढ़ने की अभिरुचि पर बुरा असर नहीं पड़ने देना चाहिए, बल्कि तकनीक को इसे बढ़ावा देने का औजार ही बना लेना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि अब तकनीक से दूर रहने का कोई औचित्य नहीं है।


दूरदर्शन न्यूज के महानिदेशक समाचार, श्री एस एम खान भी इस अवसर पर उपस्थित थे।


कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रकाशन विभाग की अपर महानिदेशक श्रीमती अरविंद मंजीत सिंह ने किया। उन्होंने बताया कि बालभारती की प्रसार संख्या डेढ़ लाख से ज्यादा है। पिछले 63 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रही `बाल भारती' मनोरंजक और ज्ञानवर्धक के साथ ही यह पत्रिका बच्चों और किशोरों की प्रतिभा के विकास के लिए रचनात्मक अभियान भी चलाती रहती है।। वार्षिक निबंध और नियमित चित्रकला प्रतियोगिताएँ और दूसरी गतिविधियाँ इसी अभियान का हिस्सा हैं जो बच्चों को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भागीदारी की प्रेरणा देती हैं। इसमें पाठकों की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने की कोशिशें लगातार जारी हैं। बदलते समय के साथ पत्रिका का कलेवर, प्रस्तुतीकरण भी बदला है। फिर भी पत्रिका की कीमत सिर्फ आठ रुपए है।


सूचना और प्रसारण मंत्रालय के गीत एवं नाटक प्रभाग ने इस अवसर पर बच्चों की रुचि के अनुरूप सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया।


बाल भारती पत्रिका के वरिष्ठ संपादक श्री वेदपाल ने कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन किया।


बालभारती के अलावा, हर वर्ग और और भाषा-भाषी के लिए किफायती दरों पर पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य के साथ प्रकाशन विभाग हर माह 13 भारतीय भाषाओं में कुल 18 पत्रिकाएँ छापता है। राष्ट्रीय विकास को दर्शाती 'योजना' पत्रिका 13 भाषाओं में निकलती है। इसके अलावा विभाग हिंदी और अंग्रेजी में ग्रामीण विकास की पत्रिका 'कुरुक्षेत्र', तथा हिंदी, और उर्दू में साहित्यिक पत्रिका 'आजकल’ का प्रकाशन भी करता है। रोजगार समाचार (हिंदी और उर्दू) तथा एंप्लॉयमेंट न्यूज (अंग्रेजी) इसके विशिष्ट पाक्षिक हैं जो बेहतर रोजगार चुनने और पाने में युवाओं का मार्गदर्शन करते हैं।

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