गतांक से आगे
प्रकाश सूर्य से पृथ्वी तक कितने समय में और कैसे पहुँचता है?
विश्वमोहन तिवारी (भू.पू. एयर वाईस मार्शल)
प्रकाश का वेग अनंत नहीं है जैसा कि प्राचीन काल में समझा जाता था। यह सच है कि उसका वेग हमारे लिये अकल्पनीय रूप से अधिक है, सामान्य घटनाओं के लिये अनंत-सा ही है - शून्य में प्रकाश का वेग ३ लाख कि.मी. प्रति सै. है। और प्रकाश का एक गुण बहुत ही विचित्र है। यदि हम एक बहुत तीव्र राकैट में बैठ कर जा रहे हों जिसका वेग १ लाख कि.मी. प्रति सैकैण्ड है, और हम उसमें एक टार्च से प्रकाश सामने की ओर फ़ेंकें तब उस प्रकाश का वेग ४ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड न होकर ३ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड ही रहेगा। और यदि उस राकैट से हम प्रकाश पीछे की ओर फ़ेंकें, तब भी उसका वेग २ लाख कि.मी. प्रति सैकैण्ड न होकर वही ३ लाख कि. मी. प्रति सैकैण्ड होगा।
पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और उसका परिपथ वृत्ताकार न होकर दीर्घवृत्तीय - अंडाकार – है। अर्थात पृथ्वी की सूर्य से दूरी वर्ष भर बदलती रहती है। (आप यह बतलाएँ कि पृथ्वी सूर्य के अधिक निकट गर्मी की ऋतु में होती है या शीतऋतु में।) अतएव प्रकाश के सूर्य से पृथ्वी तक आने की अवधि भी वर्ष भर बदलती रहती है। ऐसी स्थिति में हम औसत दूरी का सहारा लेते हैं जो हमें उस अवधि का एक औसत या मानक मान देती है ।
पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी 15 करोड कि.मी. है। खगोल की बात तो छोडें, सौर मंडल में ही दूरियां इस दूरी की लाखों गुनी हो सकती हैं । अत:ऐसी लम्बी दूरियों के लिये इस सूर्य -पृथ्वी की दूरी को एक 'खगोलीय इकाई' (एस्ट्रानामिकल यूनिट) ए.यू. मानकर उसे सम्मान दिया गया है। सूर्य के गुरुत्व बल की सीमा लगभग १२५,०००x १५ करोड़ कि. मी. है, अर्थात् १२५००० ए.यू है ।
१५ करोड़ की इस दूरी को तय करने में प्रकाश को ५०० सैकैंड ( ८ मिनिट ३३ सै.) लगते हैं. हम यह भी कह सकते हैं कि सूर्य पृथ्वी से ५०० सै. दूरी पर है. अंतरिक्ष की और भी लम्बी दूरियों को दर्शाने के लिए हम 'प्रकाश वर्ष' की इकाई का उपयोग करते हैं, जो वह दूरी है जो प्रकाश ३ लाख कि.मी. प्रति सै. के वेग से एक वर्ष में तय करता है!! मोटे तौर पर, १ प्रकाश वर्ष ९ लाख करोड़ कि.मी. के बराबर होता है। सौर मंडल का निकटतम तारा प्राक्सिमा सैंटारी है जो ४.२ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।
यह ५०० सै. की दूरी प्रकाश की तरंग शून्य में से संचरण कर आती है. यद्यपि प्रकाश एक तरंग है, उसे किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं. वैसे प्रकाशकणों, जिऩ्हें फ़ोटान कहते हैं, का प्रवाह भी है। वह तरंग तथा कण दोनों है।
यह कैसे हो सकता है?
क्रमशः
18 टिप्पणियाँ:
यदि सूरज अचानक गायब हो जाए तो हमे उसका पता पुर साढ़े आठ मिनिट बाद चलेगा !
अच्छी जानकारी। हमें अब तक मोटा-मोटी आठ मिनट याद था अब इसे सुधार कर 500 सैकंड कर लिया है।
अच्छी जानकारी दे रहे हैं आप...बधाई..इन्द्रधनुष के बारे में भी बताएं ..
apke blog ko maine apne blog men link kar rakha hai..kabhi hamare blog par bhi ayen... deendayalsharma.blogspot.com
मैंने तो यह जानकारी अपने प्रयास केबच्चों संग बाँट ली | वास्तव में बाल्गोपालों के लिए यही विज्ञान सार्थक है |
कित्ती अच्छी जानकारी मिली यहाँ आकर...
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
कृपया श्री वी एम तिवारी ( भू पू एयर मार्शल ) का संपर्क सूत्र देने का कष्ट करें , मुझे उनसे बात करनी है ।
धन्यवाद
डॉ राजीव रावत
हिंदी अधिकारी
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान
खड़गपुर 721302
9564156315
@ Rajiv Rawat ji,
His email id is -
Vishwa Tiwari ( onevishwa@gmail.com )
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Apne shi kha sir
Agar time to ak call kariaga ap kuch kuch a hai 9682401549 bura na maniaga mai apko janta hu
Ham ye kaise pata krte hai ki suraj ka Parkash 500 second me earth per ata hai,, kyo ki suraj ka Parkash to hamesha earth per reheta hai kisi na kisi bhag per.. fir Parkash dobara kaise aata hai plz mujhe batayen Parkash wapas to kabhi nhi jata hai
Sir ashman me tare hote hai to phir dharti par rat me andhera kio rahta hai
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