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"आमंत्रण" ---- `बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).

बुधवार, 3 जून 2009

कट जाएँगे मेरे बाल...


कट जाएँगे मेरे बाल...





गर्मी की छुट्टी आई है।
दीदी की मस्ती छायी है॥
पर देखो, मैं हूँ बेहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥



मम्मी कहती फँसते हैं ये।
डैडी कहते ‘हँसते हैं’ ये॥
दीदी कहती ‘हैं जंजाल’।
कट जाएँगे मेरे बाल॥



मुण्डन को है गाँव में जाना।
परम्परा से बाल कटाना॥
नाऊ की कैंची बदहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥




गाँव-गीत की लहरी होगी।
मौसी-मामी शहरी होंगी॥
ढोल - नगाड़े देंगे ताल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥



दादा – दादी, ताऊ – ताई।
चाचा-चाची, बहनें – भाई॥
सभी करेंगे वहाँ धमाल।
कट जाएँगे मेरे बाल



बूआ सब आँचल फैलाए।
बैठी होंगी दाएँ - बाएँ॥
हो जाएँगी मालामाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥




‘कोट माई’* के दर जाएँगे।
कटे बाल को धर आएँगे॥
‘माँ’ रखती है हमें निहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥



हल्दी, चन्दन, अक्षत, दही।
पूजा की थाली खिल रही॥
चमक उठेगा मेरा भाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥




मम्मी रोज करें बाजार।
गहने, कपड़े औ’ श्रृंगार॥
बटुआ ढीला - डैडी ‘लाल’।
कट जाएँगे मेरे बाल॥





अब तो होगी मेरी मौज।
नये खिलौनों की है फौज॥
मुण्डन होगा बड़ा कमाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥





[कोट माई: गाँव की अधिष्ठात्री देवी जिनके पीठ-स्थल पर जाकर माथा टेकना सभी ग्रामवासियों की श्रद्धा का विषय है।]


- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
२८ मई




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