कट जाएँगे मेरे बाल...

गर्मी की छुट्टी आई है।
दीदी की मस्ती छायी है॥
पर देखो, मैं हूँ बेहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
मम्मी कहती फँसते हैं ये।
डैडी कहते ‘हँसते हैं’ ये॥
दीदी कहती ‘हैं जंजाल’।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
मुण्डन को है गाँव में जाना।
परम्परा से बाल कटाना॥
नाऊ की कैंची बदहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
गाँव-गीत की लहरी होगी।
मौसी-मामी शहरी होंगी॥
ढोल - नगाड़े देंगे ताल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
दादा – दादी, ताऊ – ताई।
चाचा-चाची, बहनें – भाई॥
सभी करेंगे वहाँ धमाल।
कट जाएँगे मेरे बाल
बूआ सब आँचल फैलाए।
बैठी होंगी दाएँ - बाएँ॥
हो जाएँगी मालामाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
‘कोट माई’* के दर जाएँगे।
कटे बाल को धर आएँगे॥
‘माँ’ रखती है हमें निहाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
हल्दी, चन्दन, अक्षत, दही।
पूजा की थाली खिल रही॥
चमक उठेगा मेरा भाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
मम्मी रोज करें बाजार।
गहने, कपड़े औ’ श्रृंगार॥
बटुआ ढीला - डैडी ‘लाल’।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
अब तो होगी मेरी मौज।
नये खिलौनों की है फौज॥
मुण्डन होगा बड़ा कमाल।
कट जाएँगे मेरे बाल॥
- सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
२८ मई
२८ मई