20 मार्च 2010 को पहली बार विश्व गौरैया दिवस World Sparrow Day मनाया जा मनाया जा रहा है |
एक कविता आज गौरैया के नाम !
गौरैया
बेचारी गौरैया एक
बैठ गई आ कर
खम्भों के बीच पसरे
बिजली के तारों पर
सोच रही कहाँ जाऊँ, क्या करुँ
कितना और ढूँढती फिरूँ
चिंतातुर अनमनी
सारे घर मंझा आई
घोंसला का जुगाड़
कहीं नहीं बना पाई
घर अब कहाँ रहे
धन्नी बाँस मोखले वाले
दीवारें खड़ीं सपाट
लोप हो गये कब के आले
रहती वह नहीं पेड़ पर
कभी घोंसला बना कर
झरोखों मोखलों में बसती
तिनके घास फूस जुटा कर
फालतू कतरन झाड झंखाड़
जहाँ पाती चोंच में दबाती
फुर्र से उड़ जाती
घोंसले में खोंस आती
कीड़े मकोड़े अनाज-दाने
जो कुछ पाती चबा जाती
कुछ चोंच में दबाये
चिचिहाते बच्चों के
मुँह में ठूँस आती
कभी वह गौरैया
खिड़की की चौखट
अलगनी मुंडेरों पर
आँगन में चौबारों में
कबाड़ के ढेरों पर
सदियों से चहक रही थी
नाचती कूदती झगडती
पूरे घर में बहक रही थी
बच्चे किलकारी भरते
टकटकी लगा तकते
चिरैया का सर्कस देख
रोना भी भूल जाते
वक्त ने पलटा खाया
आधुनिक इमारतों का
अनोखा जाल बिछाया
उजड़ गई गौरैया की दुनिया
फैशन ने कहर ढाया
आदमी के स्वार्थ से हार कर
पहुँच गई विलुप्ति की कगार पर
हमारी घरेलू चिरैया
बेचारी गौरैया !
खम्भों के बीच पसरे
बिजली के तारों पर
सोच रही कहाँ जाऊँ, क्या करुँ
कितना और ढूँढती फिरूँ
सारे घर मंझा आई
घोंसला का जुगाड़
कहीं नहीं बना पाई
घर अब कहाँ रहे
धन्नी बाँस मोखले वाले
दीवारें खड़ीं सपाट
लोप हो गये कब के आले
रहती वह नहीं पेड़ पर
कभी घोंसला बना कर
झरोखों मोखलों में बसती
तिनके घास फूस जुटा कर
फालतू कतरन झाड झंखाड़
जहाँ पाती चोंच में दबाती
फुर्र से उड़ जाती
घोंसले में खोंस आती
कीड़े मकोड़े अनाज-दाने
जो कुछ पाती चबा जाती
कुछ चोंच में दबाये
चिचिहाते बच्चों के
मुँह में ठूँस आती
कभी वह गौरैया
खिड़की की चौखट
अलगनी मुंडेरों पर
आँगन में चौबारों में
कबाड़ के ढेरों पर
सदियों से चहक रही थी
नाचती कूदती झगडती
पूरे घर में बहक रही थी
बच्चे किलकारी भरते
टकटकी लगा तकते
चिरैया का सर्कस देख
रोना भी भूल जाते
वक्त ने पलटा खाया
आधुनिक इमारतों का
अनोखा जाल बिछाया
उजड़ गई गौरैया की दुनिया
फैशन ने कहर ढाया
आदमी के स्वार्थ से हार कर
पहुँच गई विलुप्ति की कगार पर
हमारी घरेलू चिरैया
बेचारी गौरैया !
सत्यनारायण शर्मा कमल