सुन्दरता
ऋषभ देव शर्मा
ऋषभ देव शर्मा
मैंने फूलों को देखा खिलते हुए,
मैंने चिडियों को देखा चहकते हुए,
मैंने लहरों को देखा मचलते हुए,
मैंने बादल को देखा बरसते हुए,
मैंने किसान को देखा पसीना बहाते हुए,
मैंने किसान को देखा पसीना बहाते हुए,
मैंने लुहार को देखा लोहे सा तपते हुए
मैंने चाँद को देखा घटते-बढ़ते हुए,
मैंने सूरज को देखा चमकते हुए,
हर बार मुझे लगा,
हर बार मुझे लगा,
यह दुनिया कितनी सुंदर है।
लोग इसे कुरूप क्यों बनाते हैं?
यह तो सचमुच सुंदर है!!!
यह तो सचमुच सुंदर है!!!
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