काश! ये कोशिश मिटा दे अज्ञान का अंधेरा
धनबाद [अमित वत्स]। एक दूना दो, दो दूना चार, तीन दूना छह॥ यह पहाड़ा इन दिनों स्टेशन में गूंज रहा है। यह पहाड़ा पढ़ने वाले कोई और नहीं बल्कि स्टेशन पर जीविकोपार्जन करने वाले वे बच्चे हैं, जो कल तक स्टेशन की कुसंस्कृति में ढल चुके थे या फिर रोटी-तड़का से भूख भगाने के लिए जूता पालिश या अन्य कार्य किया करते थे। इनकी स्थिति पहले जैसे नहीं रही अब ये कुसंस्कृति को भूल काम के साथ-साथ शिक्षा से जुड़कर सपने संजोने लग गए हैं। इनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने का बीड़ा उठाया है सर्व शिक्षा अभियान के तहत सृजन ने। कहते हैं अंधेरा अनंत है पर एक नन्हीं सी लौ अंधेरे को चीर कर रख देती है। शायद यह लौ भी अज्ञान के अंधेरे को प्रकाशवान बना दे।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्था इनसर्च ने प्लेटफार्म पर रहने वाले बच्चों के लिए इवनिंग स्कूल सृजन खोला है। इवनिंग स्कूल प्लेटफार्म नंबर सात के निकट खोला गया है। शाम चार से साढ़े छह बजे तक चलने वाले इस स्कूल में पचास बच्चे पढ़ रहे हैं। पढ़ने वाले बच्चे पांच वर्ष से लेकर अधिकतम 16 वर्ष के हैं। ये सभी बच्चे या तो प्लेटफार्म पर जूता पालिस, चाय बेचने का काम करते हैं अथवा नशे के आदी हो चुके हैं।
शिक्षक संजय कुमार व पंकज कुमार बताते हैं कि इन्हें पढ़ाना काफी मुश्किल काम है। ये बच्चे प्रारंभ में तो दो मिनट से ज्यादा बैठ ही नहीं पाते थे। स्टेशन पर कोई एनाउंसमेंट होने अथवा भीड़ लगने पर वे भाग कर वहां चले जाते थे। लेकिन तीन महीने के अथक प्रयास के बाद स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। नशे के आदी हो चुके बच्चों की आदत में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।
प्रारंभ में सभी बच्चों को बैठने के लिए, शरीर को कैसे साफ रखें, रोज नहाने व मुंह धोने समेत अन्य बेसिक जानकारियां दी गई। अब अधिकांश बच्चे एक से दस तक की गिनती, पहाड़ा, ए बी सी डी व अन्य चीजें जानने लगे हैं। संजय कुमार के अनुसार बच्चों ने काफी कुछ सीखा है। बच्चे ठीक चार बजे यहां पहुंच जाते हैं, यह इस स्कूल की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
उन्होंने कहा कि बच्चे अब सपने देखने लगे हैं यही इनको आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा। स्कूल जल्द ही सुबह 10 से दोपहर साढ़े बारह बजे, दोपहर दो बजे से शाम साढ़े चार बजे तथा शाम साढ़े चार बजे से रात सात बजे तक तीन शिफ्टों में संचालित होगा।
इन बच्चों को सुधार दिया तो मिशन पूरा
-उम्र महज आठ साल, नाम दीपक। दीपक प्रतिदिन रात में दारू पीता है। संजय कुमार बताते हैं दीपक जैसे बच्चों को सही राह पर ले आया तो उनका मिशन पूरा हो जाएगा। बस यही चाहत है कि प्लेटफार्म पर रहकर जीवन बसर करने वाले इन बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा दूं।
अधिकारी बनने की तमन्ना
('जागरण' से साभार )
4 टिप्पणियाँ:
aap bhut hi aacha kam kar rhe hai. is karya ke liye shubkamnaye.
एक जागरुक एवं सार्थक प्रयास...साधुवाद.
जसवीर सुराणा जी व समीर जी,
आप के प्रति धन्यवादी हूँ.
सद्भाव बनाए रखें.
काश ऐसी पहल हर व्यक्ति करने लगे। मैंने भी मजदूर वर्ग के उन बच्चों को शिक्षा सेने का कार्य अपने हाथ में लिया हैजो पूरा दिन कुसंगतिमें पदकर इधर -उधर घूमते रहते हैं और कबादा बीनते रहते हैं।
प्रयासस रंग लाया हैऔर आज की तारीख में 45 से 50 बच्चे नियमित अध्ययन के लिये आते हैं।
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