एक बालगीत
हिमपात
कैलिफ़ोर्निया में टाहो झील के किनारे
शकुन्तला बहादुर
ऊँचे पर्वत पर हम आए ।
मन में हैं खुशियाँ भर लाए।।
पाइन के हैं वृक्ष बड़े ।
सीधे हैं प्रहरी से खड़े।।
देखो झरती कैसे झर झऱ।
गिरती जाती बर्फ़ निरन्तर।।
बरस रही है सभी तरफ़।
दुग्ध-धवल सी दिखे बरफ़।।
आज हुआ कैसा हिमपात।
ढक गइ धरा, ढके तरुपात।।
ऐसा लगे शीत के भय से।
सूरज भी न निकला घर से।।
बादल की वह ओढ़ रज़ाई।
बिस्तर में छिप लेटा भाई।।
हैं मकान सब ढके बर्फ़ से।
बन्द रास्ते हुए बर्फ़ से ।।
देखो बाहर ज़रा निकलकर ।
चलो बर्फ़ में सँभल सँभल कर।।
बरफ़ थपेड़े दे गालों पर।
जूतों में गल जाए पिघलकर।।
ऊँचे कोमल बर्फ़ के गद्दे।
बिछे हुए हैं इस भू पर।।
मन करता है उन पर लोटें।
बच्चों के संग हिलमिल कर।।
बर्फ़ के लड्डू बना बना कर।
बालक खेलें खुश हो हो कर।।
मारें इक दूजे को हँस कर।
फिर भागें किलकारी भर कर।।
और कभी मन होता ऐसा।
बचपन में देखा था जैसा।।
बर्फ़ का चूरा हाथ में लेकर।
उस पर शर्बत लाल डाल कर।।
चुस्की लेकर उसको खाएँ।
घिसी बरफ़ का लुत्फ़ उठाएँ।।
दृश्य मनोरम बड़ा यहाँ है।
अपना मन खो गया यहाँ है।।
** ** ** **
मन में हैं खुशियाँ भर लाए।।
पाइन के हैं वृक्ष बड़े ।
सीधे हैं प्रहरी से खड़े।।
देखो झरती कैसे झर झऱ।
गिरती जाती बर्फ़ निरन्तर।।
बरस रही है सभी तरफ़।
दुग्ध-धवल सी दिखे बरफ़।।
आज हुआ कैसा हिमपात।
ढक गइ धरा, ढके तरुपात।।
ऐसा लगे शीत के भय से।
सूरज भी न निकला घर से।।
बादल की वह ओढ़ रज़ाई।
बिस्तर में छिप लेटा भाई।।
हैं मकान सब ढके बर्फ़ से।
बन्द रास्ते हुए बर्फ़ से ।।
देखो बाहर ज़रा निकलकर ।
चलो बर्फ़ में सँभल सँभल कर।।
बरफ़ थपेड़े दे गालों पर।
जूतों में गल जाए पिघलकर।।
ऊँचे कोमल बर्फ़ के गद्दे।
बिछे हुए हैं इस भू पर।।
मन करता है उन पर लोटें।
बच्चों के संग हिलमिल कर।।
बर्फ़ के लड्डू बना बना कर।
बालक खेलें खुश हो हो कर।।
मारें इक दूजे को हँस कर।
फिर भागें किलकारी भर कर।।
और कभी मन होता ऐसा।
बचपन में देखा था जैसा।।
बर्फ़ का चूरा हाथ में लेकर।
उस पर शर्बत लाल डाल कर।।
चुस्की लेकर उसको खाएँ।
घिसी बरफ़ का लुत्फ़ उठाएँ।।
दृश्य मनोरम बड़ा यहाँ है।
अपना मन खो गया यहाँ है।।
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3 टिप्पणियाँ:
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
आज मुझे आपके Blog पर आकर अपार प्रसन्नता हुई. प्राकृतिक बिम्बो से भरपूर बाल कविता के लिए बधाई. आपने तो टाहो झील की सैर ही करा दी. यहां India में हमने भी हिमपात देख लिया.
बढिया चित्र और कविता में जीवंत चित्रण के लिए बधाई॥
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