नीलमघाटी
इस पर्वत के पार एक नीलमवाली घाटी है ,
परियाँ आतीं रोज जहाँ पर संध्या और सकारे !
*
आज चलो इस कोलाहल से दूर प्रकृति से मिलने
वन- फूलों के साथ खेलने और खुशी से खिलने
स्वच्छ वायु ,निर्मल जलधारा .हरे-भरे फूले वन ,
कलरव करते रंगरंग के पक्षी रूप सँवारे !
*
पशु-पक्षी ये जीव हमारी दुनिया के सहभागी ,
जो अधिकार हमें धरती पर वैसा ही उनका भी
बुद्धि मिली है सबके लिये विचार करें अपना सा
एक शर्त बस-जो भी आये मन में आदर धारे
*
परियाँ वहीं खेलने आतीं जहाँ प्यार बिखरा हो ,
जड़-चेतन के लिये मधुर सद्भाव जहाँ निखरा हो
धरती की सुन्दर रचना सम-भाव सभी को धारे
और शपथ लो यही कि इसमें माँ का रूप निहारें !
धरती की सुन्दर रचना सम-भाव सभी को धारे
और शपथ लो यही कि इसमें माँ का रूप निहारें !
- प्रतिभा सक्सेना
5 टिप्पणियाँ:
bahut khoob Kavita ji...
बहुत सुन्दर रचना..बधाई.
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'शब्द सृजन की ओर' पर आपका स्वागत है !!
adbhut rachna :)
http://liberalflorence.blogspot.com/
बहुत सुंदर.
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