नेताजी सुभाषचन्द्र बोस
कवि श्री गोपालप्रसाद व्यास
***
है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।
अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।
यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
जो रक्त कणों से लिखी गई, जिसकी जयहिन्द निशानी है।।
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत-भू का उजियारा था ।
पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।
यह वीर चक्रवर्ती होगा, या त्यागी होगा सन्यासी।
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग युग तक भारतवासी।।
सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था ।
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।
बाँधे जाते इंसान, कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
काया ज़रूर बाँधी जाती, बाँधे न इरादे जाते हैं।।
वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था, जो मौका पाकर निकल गया।
वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।
जिस तरह धूर्त दुर्योधन से, बचकर यदुनन्दन आए थे।
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के, पहरेदार छकाए थे ।।
बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा, तोता-सा बेदाग़ गया।
जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।।
वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे, ये धूमिल अभी कहानी है।
हमने तो उसकी नयी कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है।।
|
शनिवार, 4 सितंबर 2010
है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं
शनिवार, 7 अगस्त 2010
प्रकाश सूर्य से पृथ्वी तक कितने समय में और कैसे पहुँचता है?
शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
आसमान में कितने तारे?
रविवार, 13 जून 2010
हम बच्चे मज़दूर के
चन्दा मामा दूर के
छिप-छिप कर खाते हैं हमसे
लड्डू मोती चूर के
लम्बी-मोटी मूँछें ऍंठे
सोने की कुर्सी पर बैठे
धूल-धूसरित लगते उनको
हम बच्चे मज़दूर के
चन्दा मामा दूर के।
बातें करते लम्बी-चौड़ी
कभी न देते फूटी कौड़ी
डाँट पिलाते रहते अक्सर
हमको बिना कसूर के
चन्दा मामा दूर के।
मंगलवार, 18 मई 2010
नीलमघाटी
नीलमघाटी
इस पर्वत के पार एक नीलमवाली घाटी है ,
*
आज चलो इस कोलाहल से दूर प्रकृति से मिलने
वन- फूलों के साथ खेलने और खुशी से खिलने
स्वच्छ वायु ,निर्मल जलधारा .हरे-भरे फूले वन ,
कलरव करते रंगरंग के पक्षी रूप सँवारे !
*
पशु-पक्षी ये जीव हमारी दुनिया के सहभागी ,
जो अधिकार हमें धरती पर वैसा ही उनका भी
बुद्धि मिली है सबके लिये विचार करें अपना सा
एक शर्त बस-जो भी आये मन में आदर धारे
*
परियाँ वहीं खेलने आतीं जहाँ प्यार बिखरा हो ,
धरती की सुन्दर रचना सम-भाव सभी को धारे
और शपथ लो यही कि इसमें माँ का रूप निहारें !
गुरुवार, 13 मई 2010
तन पुलकित मन प्रमुदित करती
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
माँ ने मुझसे एक रोज़ कहा था
माँ ने मुझसे एक रोज़ कहा था
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010
बाल भारती निबंध प्रतियोगिता पुरस्कार
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत प्रकाशन विभाग की अपर महानिदेशक श्रीमती वीना जैन ने किया। हर वर्ग और और भाषा-भाषी के लिए किफायती दरों पर पठनीय सामग्री उपलब्ध कराने के उद्देश्य के साथ प्रकाशन विभाग हर माह 13 भारतीय भाषाओं में राष्ट्रीय विकास को दर्शाती ‘योजना’ पत्रिका छापता है। इसके अलावा विभाग हिंदी और अंग्रेजी में ग्रामीण विकास की पत्रिका ‘कुरुक्षेत्र’, तथा हिंदी, और उर्दू में साहित्यिक पत्रिका ‘आजकल’ का प्रकाशन भी करता है।
शनिवार, 20 मार्च 2010
एक कविता आज गौरैया के नाम !
20 मार्च 2010 को पहली बार विश्व गौरैया दिवस World Sparrow Day मनाया जा मनाया जा रहा है |
एक कविता आज गौरैया के नाम !
बेचारी गौरैया एक
खम्भों के बीच पसरे
बिजली के तारों पर
सोच रही कहाँ जाऊँ, क्या करुँ
कितना और ढूँढती फिरूँ
चिंतातुर अनमनी
सारे घर मंझा आई
घोंसला का जुगाड़
कहीं नहीं बना पाई
घर अब कहाँ रहे
धन्नी बाँस मोखले वाले
दीवारें खड़ीं सपाट
लोप हो गये कब के आले
रहती वह नहीं पेड़ पर
कभी घोंसला बना कर
झरोखों मोखलों में बसती
तिनके घास फूस जुटा कर
फालतू कतरन झाड झंखाड़
जहाँ पाती चोंच में दबाती
फुर्र से उड़ जाती
घोंसले में खोंस आती
कीड़े मकोड़े अनाज-दाने
जो कुछ पाती चबा जाती
कुछ चोंच में दबाये
चिचिहाते बच्चों के
मुँह में ठूँस आती
कभी वह गौरैया
खिड़की की चौखट
अलगनी मुंडेरों पर
आँगन में चौबारों में
कबाड़ के ढेरों पर
सदियों से चहक रही थी
नाचती कूदती झगडती
पूरे घर में बहक रही थी
बच्चे किलकारी भरते
टकटकी लगा तकते
चिरैया का सर्कस देख
रोना भी भूल जाते
वक्त ने पलटा खाया
आधुनिक इमारतों का
अनोखा जाल बिछाया
उजड़ गई गौरैया की दुनिया
फैशन ने कहर ढाया
आदमी के स्वार्थ से हार कर
पहुँच गई विलुप्ति की कगार पर
हमारी घरेलू चिरैया
बेचारी गौरैया !