पेड़ कट गए, चिडियाँ गायब नहीं कबूतर मिलते
चलो प्रकृति की ओर चलें अब सब नदियों को जोडें।
मम्मी-पापा का रोल
--शिव भजन कमलेश
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गुड्डू ने अपने पापा का किया एक दिन रोल
ढीला सूट पहन कर बैठा उपन्यास को खोल
पावरदार चढ़ा कर चश्मा लगा उलटने पेज़
छोटी कुरसी में लगती गरदन से ऊँची मेज़
बैंगन बाँध बना कर जूड़ा होंठ बनाए लाल
छोटी मुन्नी उल्टा पल्लू ओढ़ लिया फिर शाल
खूंटीदार पहन कर सैण्डिल मम्मी बनी सरोज
खाली झोला ले कर आई बना क्रोध का पोज
लो जी जल्दी सब्जी लाऒ कितनी कर दी लेट
चूल्हा ठंडा हुआ जा रहा सिकुड़ रहा है पेट
इतनी जल्दी क्यों करती हो अभी बजे हैं आठ
ऐसे रौब जमाती जैसे खड़ी करोगी खाट
गुस्से में भर कर सरोज ने मारा जम कर छक्का
गिरा कान से चश्मा पा कर उपन्यास का धक्का
अलग हो गई ज़िल्द नज़र का चशमा गिर कर चूर
खत्म हो गया खेल साथ में होश हुआ काफूर
(प्रस्तुति सहयोग : योगेन्द्र मौदगिल)
`बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.
कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).
यदि आप अथवा आपका कोई परिचित इस अभियान से जुड़ना चाहेंगे तो उन्हें सहयोगी के रूप में मुख्यपृष्ठ पर आदरपूर्वक दर्शाया जाएगा।
धन्यवाद.
तुम धरा सपूत हो
शूर न्याय दूत हो
राह यदि नहीं मिले
पथ नया बना चलो
फूल हों कि शूल हों
राह पर चले चलो
तुम बढ़ो, रुको नहीं
वेग बन चले चलो
राम की शपथ तुम्हें
कृष्ण की शपथ तुम्हें
तुम शिवा प्रताप की
आन से नहीं टलो
लक्ष्य प्रिय महान हो
साथ दिव्य गान हो
संग दीप बुद्धि हो
भूल तुम न मन छलो
स्वप्न को उतार दो
स्वर्ग को निखार दो
लौह रूप धार कर
ताप में नहीं गलो
खट्टे अंगूर
----डा. किशोर काबरा
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एक लोमड़ी भूखी प्यासी
चली ढूंढने खाना
दिन भर घूमी इधर उधर पर
मिला न उसको दाना
एक बाग़ में चलते चलते
निकल गई वह दूर
देखा उसने लटक रहे हैं
बडे़ बड़े अंगूर
पके पके अंगूर देख कर
मुंह में आया पानी
उछल कूद कर लगी पकड़ने
उन्हें लोमड़ी रानी
मगर बड़ी ऊंचाई पर थे
अंगूरों के गुच्छे
मीठे मीठे प्यारे प्यारे
मोती जैसे अच्छे
आखिर उनको पकड़ न पाई
हो गई थक कर चूर
जाते जाते बोली कितने
खट्टे हैं अंगूर
---प्रस्तुति; योगेन्द्र मौदगिल