पवन चंदन की बाल कविता
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हाथी, ऊंट से
हाथी, ऊंट से
हाथी बोला ऊंट से तुम क्या लगते हो ठूंठ से
कमर में कूबड़ कैसा है गला गली के जैसा है
दुबली पतली काया है कब से कुछ नहीं खाया है
हर कोने से सूखे हो लगता बिलकुल भूखे हो
कहां के हो क्या हाल है लगता पड़ा अकाल है
ऊंट, हाथी से
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ऐ भोंदूमल गोलमटोल मोटे तू ज्यादा मत बोल
सबसे ज्यादा खाया है तू खा खाकर मस्ताया है
फसलें चाहे अच्छी हों गन्ना हो या मक्की हो
तेरे जैसे हों दो चार तो हो जायेगा बंटाढार
जैसा अपना इण्डिया गेट देख देखकर तेरा पेट
समझ गये हम सारा हाल क्यों पड़ता है रोज अकाल
सब कुछ तू खा जायेगा तो ऊंट कहां से खायेगा
(प्रस्तुति सहयोग : योगेन्द्र मौदगिल )
ऐ भोंदूमल गोलमटोल मोटे तू ज्यादा मत बोल
सबसे ज्यादा खाया है तू खा खाकर मस्ताया है
फसलें चाहे अच्छी हों गन्ना हो या मक्की हो
तेरे जैसे हों दो चार तो हो जायेगा बंटाढार
जैसा अपना इण्डिया गेट देख देखकर तेरा पेट
समझ गये हम सारा हाल क्यों पड़ता है रोज अकाल
सब कुछ तू खा जायेगा तो ऊंट कहां से खायेगा
(प्रस्तुति सहयोग : योगेन्द्र मौदगिल )
1 टिप्पणियाँ:
योगेन्द्र मौद्गिल जी के सहयोग से निखार आ रहा है.
आपको अनेकशः साधुवाद....
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