कल ही भारत में ऑस्कर -विजेता फिल्म के बाल कलाकार अज़हरुद्दीन की धारावी में उसके पिता द्वारा की गयी पिटाई का समाचार दर्शकों ने जाना सुना। उस पर आई प्रतिक्रियाओं के साथ ही यह प्रश्न भी उठाया गया कि क्या माता -पिता द्वारा अपनी संतान की पिटाई उचित है ? या अनुचित है ? क्या इसे शारीरिक अत्याचार की श्रेणी में रखा जाना चाहिए अथवा नहीं ?
देर रात को ब्लॉग जगत की पोस्ट देखते हुए मैं यकायक महाशक्ति ब्लॉग पर पहुँची ( पिता बच्चे को मार दे तो यह भी मीडिया की खबर होती है)
यहाँ बताया गया था कि
" इनकी किस्मत में आई चांदनी पर फिर से स्लम का अंधेरा छाने लगा है। गुरुवार को ही ऑस्कर समारोह से घर लौटने वाले अजहरुद्दीन को उसके बाप ने मामूली सी बात पर पिटाई कर दी । स्लमडॉग में यंग हीरो का रोल करने वाला 10 साल का अजहर मुंबई में धारावी के स्लम इलाके में रहता है। लॉस ऐंजिलिस में स्लमडॉग को 8 ऑस्कर पुरस्कार मिले हैं। अजहर भी इस समारोह में शामिल होने के लिए वहां पहुंचा था। गुरुवार को ही घर लौटे अजहर को उस दिन मीडिया के लोगों, मित्रों और पड़ोसियों ने घेरे रखा। जबकि लॉस ऐंजिलिस से लंबी यात्रा कर लौटा अजहर थक गया था और आराम करना चाहता था। इसी कारण वह शुक्रवार को स्कूल भी नहीं गया। पर शुक्रवार को भी मीडिया के लोग और कुछ अन्य लोग उससे मिलना चाहते थे। वे उसके घर आने लगे, जबकि अजहर सोना चाहता था।उसके पिता 45 साल के मुहम्मद इस्माइल को यह बात नागवार गुजर रही थी। उसे यह लग रहा है कि अजहर ही उन्हें इस स्लम से बाहर निकालने की टिकट है। लेकिन जब अजहर लोगों से मिलने नहीं निकला और उसने जोर से चिल्ला कर यह कहा कि अभी वह किसी से मिलना नहीं चाहता तो उन्होंने अजहर की जमकर लात-घूंसों से पिटाई कर दी।सबके सामने पिटता अजहर रोता-चिल्लाता हुआ घर के अंदर भागा। पर घर के अंदर भी बाप ने उसे दो-चार हाथ जड़ दिए। हालांकि बाद में टीबी के मरीज इस्माइल ने अपने इस व्यवहार के लिए अजहर से माफी मांगी। उन्होंने कहा, मैं अजहर से बहुत प्यार करता हूं। मुझे उसपर गर्व है। बस मैं पता नहीं कैसे कुछ देर के लिए अपना आपा खो बैठा था।जिस दिन अजहर मुंबई लौटा था, उस दिन भी अजहर के पिता कई बातों पर नाराज होते रहे। अजहर को जिस कार में बिठाया गया था, उसमें उन्हें जगह नहीं मिल पाई थी तो वह कार की छत पर ही बैठ गए थे। अजहर की पिटाई की खबर फोटो सहित इंग्लैंड के सन अखबार में छपी है। इस बात पर वहां हंगामा मचा हुआ है। लोगों और मानवाधिकार संस्थाओं ने इस बात पर बवेला मचाना शुरू कर दिया है।
नोट : इस पोस्ट को बाल हिंसा के सर्मथन के रूप में न देखा जाये, हमें न पता था कि पुत्र और पिता के रिश्तो में मीडिया भूमिका अहम हो जायेगी। जो भी इस पोस्ट को पढ़ रहा होगा, कभी न कभी वह अपने पिता-माता-भाई से मार न खाया हो। अगर खाया भी होगा तो शायद ही आज उस मार की किसी को खुन्नस होगी ?
इस प्रविष्टि व इस पर आई प्रतिक्रियाओं को पढ़ कर मुझे दंग रह जाना पड़ा। प्रतिक्रियाएँ २ थीं, देखिए
मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। हमारे भीतर यह औरंगजेबी प्रवृत्ति कैसे व कब मुँह उठाती है, वास्तव में देखने की चीज है, चिंता की बात है। अंत में उद्विग्न हो कर कुछ कड़वी टिप्पणी मुझे विवश हो लिखनी पड़ी, रुका नहीं गया। वही अपनी बात यहाँ दुहरा रही हूँ -
माता-पिता द्वारा या अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों द्वारा डाँट या मार खाना कोई अत्याचार नहीं है- यह बात सोलह आने सही है। हम आप में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने अपने माता-पिता द्वारा की गई पिटाई का स्वाद न चखा हो। ऐसा वे अपने बच्चों के भले की भावना या सुधार के लिए ही करते हैं,इसमें भी कोई दो राय नहीं हैं।
किन्तु यहाँ मामला दूसरा है, यहाँ बच्चे को कमाई का संसाधन,स्रोत,या पैसा उगाहने की मशीन बनने से इन्कार करने ( वह भी उसकी स्वाभाविक प्राकृतिक आवश्यकता की विवशता की घड़ी में) पीटा गया है। क्या यह निर्दयता नहीं है? राक्षसपन नहीं है? एक छोटा बच्चा जो जेटलैग से त्रस्त है, थका है, उसे धन्धे की लिए उतरने को मजबूर करने जैसा ही तो है यह।
माता-पिता द्वारा अमूमन की जाने वाली पिटाई और इस पिटाई में यह बड़ा अन्तर है। इसकी निन्दा व भर्त्स्ना की जानी चाहिए। बालमजदूरी के लिए विवश करना ही तो है यह। आप लोग कैसे निर्दयी हैं जो यह भी नहीं देखते! और पश्चिम को कोसने का अवसर मिलने पर झट से अपनी हर चीज को जायज व उनकी हर बात को नाजायज सिद्ध करने लगते हैं!!
कमाल है!!!
3 टिप्पणियाँ:
न जाने कितने बच्चे पिटते रहते हैं पर भला हो आस्कर का कि यह बच्चा चर्चा में आ गया।
निसंदेह यहाँ मामला दूसरा है.वैसे भी भारत में बाल शोषण मामले में कानून ओर कानून का पालन करने वाले दोनों ढीले है ..यहाँ अभी भी कितने छोटू ढाबो या दुकानों पे अपनी जिंदगी घिसट रहे है
बालसभा पर प्रकाशित सामग्री से
यह नहीं लगता कि
वह बच्चों के लिए है!
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