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"आमंत्रण" ---- `बालसभा’ एक अभियान है जो भारतीय बच्चों के लिए नेट पर स्वस्थ सामग्री व जीवनमूल्यों की शिक्षा हिन्दी में देने के प्रति प्रतिबद्ध है.ताकि नेट पर सर्फ़िंग करती हमारी भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति, साहित्य व मानवीयमूल्यों की समझ भी इस संसाधन के माध्यम से प्राप्त हो व वे केवल उत्पाती खेलों व उत्तेजक सामग्री तक ही सीमित न रहें.कोई भी इस अभियान का हिस्सा बन सकता है, जो भारतीय साहित्य से सम्बन्धित सामग्री को यूनिकोड में टंकित करके ‘बालसभा’ को उपलब्ध कराए। इसमें महापुरुषों की जीवनियाँ, कथा साहित्य व हमारा क्लासिक गद्य-पद्य सम्मिलित है ( जैसे पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, हितोपदेश इत्यादि).

सोमवार, 28 सितंबर 2009

बस इसीलिए ..........



बस इसीलिए जग शिक्षक के चरणों में शीश नवाता है
-
ऋषभदेव शर्मा







|| शिक्षा मानव का आभूषण
शिक्षा मानव का शृंगार
शिक्षक जीवन के निर्माता
शिक्षक विद्या के आगार ||




शिक्षक समाज के गौरव हैं
वे ज्ञान दीप लेकर चलते
वे अंधकार के दुश्मन हैं
हम उनकी आभा में पलते




शिक्षक पहले खुद जगते हैं
फिर सर्व समाज जगाते हैं
वे देते वैज्ञानिक चिंतन
झूठे विश्वास भगाते हैं




शिक्षक श्रद्धा के पात्र सदा
उनके शब्दों में सार भरा
वे सृजन करें नव पीढ़ी का
यह उनके ही सिर भार धरा




शिक्षक समाज के पथदर्शक
शिक्षक समाज के रक्षक हैं
शिक्षक हैं पोषक मूल्यों के
शिक्षक संस्कृति संरक्षक हैं




है शिक्षक का सम्मान जहाँ
वह सभ्य समाज कहाता है
बस इसीलिए जग शिक्षक के
चरणों में शीश नवाता है |

2 टिप्पणियाँ:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

तभी तो भारत में गुरु देवो भवा कहा जाता था। उसके पथप्रदर्शन में ही तो हमारी संस्कृति परवान चढी़ थी। अब न वैसे गुरू हैं जो बच्चों को ऐसी शिक्षा दें निर्लिप्त होकर, बिना कुछ लालच के। अब तो ट्यूशन में ही छात्र को ‘ज्ञान’ बांटने का चलन हो गया है। काश! फिर ऐसे शिक्षक लौट आएं॥

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

शिक्षक को लेकर लिखी गयी एक बढ़िया रचना---शिक्षकों को जरूर पढ़ना चाहिये इसे ।
हेमन्त कुमार

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