बस इसीलिए जग शिक्षक के चरणों में शीश नवाता है
- ऋषभदेव शर्मा
|| शिक्षा मानव का आभूषण
शिक्षा मानव का शृंगार
शिक्षक जीवन के निर्माता
शिक्षक विद्या के आगार ||
शिक्षक समाज के गौरव हैं
वे ज्ञान दीप लेकर चलते
वे अंधकार के दुश्मन हैं
हम उनकी आभा में पलते
शिक्षक पहले खुद जगते हैं
फिर सर्व समाज जगाते हैं
वे देते वैज्ञानिक चिंतन
झूठे विश्वास भगाते हैं
शिक्षक श्रद्धा के पात्र सदा
उनके शब्दों में सार भरा
वे सृजन करें नव पीढ़ी का
यह उनके ही सिर भार धरा
शिक्षक समाज के पथदर्शक
शिक्षक समाज के रक्षक हैं
शिक्षक हैं पोषक मूल्यों के
शिक्षक संस्कृति संरक्षक हैं
है शिक्षक का सम्मान जहाँ
वह सभ्य समाज कहाता है
बस इसीलिए जग शिक्षक के
चरणों में शीश नवाता है |
2 टिप्पणियाँ:
तभी तो भारत में गुरु देवो भवा कहा जाता था। उसके पथप्रदर्शन में ही तो हमारी संस्कृति परवान चढी़ थी। अब न वैसे गुरू हैं जो बच्चों को ऐसी शिक्षा दें निर्लिप्त होकर, बिना कुछ लालच के। अब तो ट्यूशन में ही छात्र को ‘ज्ञान’ बांटने का चलन हो गया है। काश! फिर ऐसे शिक्षक लौट आएं॥
शिक्षक को लेकर लिखी गयी एक बढ़िया रचना---शिक्षकों को जरूर पढ़ना चाहिये इसे ।
हेमन्त कुमार
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