माँ का दिल सागर अगम
डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा'अरुण'
जब तक माँ जग में रहे, बेटा बेटा होय!
माँ छोडे तो कुछ नहीं,बेटा चुपचुप रोय!!
ममता बन साकार माँ,जग में लेती रूप!
शीतलता संतान को, खुद ले लेती धूप !!
जब तक माँ का साथ है, नहीं चाहिए और!
माँ जिस दिन संग छोड़ती,मिले न कोई ठौर!!
माँ का दिल सागर अगम,जिसका ओर न छोर!
माँ के बिन संतान है, ज्यों पतंग बिन डोर !!
प्रभु रूठे माँ ठौर है, माँ तो रूठे नाहि !
माँ छोडे तो कुछ नहीं,बेटा चुपचुप रोय!!
ममता बन साकार माँ,जग में लेती रूप!
शीतलता संतान को, खुद ले लेती धूप !!
जब तक माँ का साथ है, नहीं चाहिए और!
माँ जिस दिन संग छोड़ती,मिले न कोई ठौर!!
माँ का दिल सागर अगम,जिसका ओर न छोर!
माँ के बिन संतान है, ज्यों पतंग बिन डोर !!
प्रभु रूठे माँ ठौर है, माँ तो रूठे नाहि !
प्रभु को चाहो देखना, देखो माँ मन माहि!!
माँ धरती का रूप है, दिव्य क्षमा साकार !
सागर सा दिल माँ लिए, नित करती उपकार!!
माँ मर जाए जन्म दे, फिर भी रहती पास !
रोम-रोम में नित रमे, याद करे हर साँस !!
माँ का ऋण चुकता नहीं, करलो जतन हज़ार!
दो आँसू बस भाव के, कर दें बेडा पार !!
माँ केवल अहसास है, जैसे पुष्प - सुगंध !
रमी रहे मन में सदा, तोड़ जगत के बंध !!
माँ मेरी पहचान है, माँ से पाई देह !
नित्य रहेगी भाव बन, नहीं तनिक संदेह!!
____________ _______
माँ धरती का रूप है, दिव्य क्षमा साकार !
सागर सा दिल माँ लिए, नित करती उपकार!!
माँ मर जाए जन्म दे, फिर भी रहती पास !
रोम-रोम में नित रमे, याद करे हर साँस !!
माँ का ऋण चुकता नहीं, करलो जतन हज़ार!
दो आँसू बस भाव के, कर दें बेडा पार !!
माँ केवल अहसास है, जैसे पुष्प - सुगंध !
रमी रहे मन में सदा, तोड़ जगत के बंध !!
माँ मेरी पहचान है, माँ से पाई देह !
नित्य रहेगी भाव बन, नहीं तनिक संदेह!!
____________ _______
-- पूर्व प्राचार्य,
७४/३,न्यू नेहरु नगर,रुड़की-२४७६६७
3 टिप्पणियाँ:
सुंदर कविता। मां की ममता से लेकर उसके दिव्य रूप तक को समेटा गया है इस कविता में।
मां पर लिखी आप की यह कविता बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद
मां को लेकर लिखे गये बहुत सुन्दर दोहे---मां के हर रूप को समेटा गया है इसमें। आदरणीय अरुण जी को हार्दिक बधाई इस सुन्दर रचना के लिये।
हेमन्त कुमार
एक टिप्पणी भेजें
आपका एक-एक सार्थक शब्द इस अभियान व प्रयास को बल देगा. मर्यादा व संतुलन, विवेक के पर्याय हैं और उनकी सराहना के शब्द मेरे पास नहीं हैं;पुनरपि उनका सत्कार करती हूँ|आपके प्रतिक्रिया करने के प्रति आभार व्यक्त करना मेरा नैतिक दायित्व ही नहीं अपितु प्रसन्नता का कारण भी है|पुन: स्वागत कर हर्ष होगा| आपकी प्रतिक्रियाएँ मेरे लिए महत्वपूर्ण हैं।